दहेज प्रथा पर निबंध । Essay on Dahej Pratha in Hindi – दोस्तो आज मै कक्षा 12वीं तक के सभी छात्र-छात्राओं के लिए दहेज प्रथा पर निबंध लिखी हूँ। इस Article मे दहेज प्रथा से जुड़ी सभी मुद्दो पर चर्चा करी है।
Contents
Essay on Dahej Pratha in Hindi । दहेज प्रथा पर निबंध
यू तो हमारे देश में कई ऐसी प्रथाएं प्रचलित है। जिनके भीतर ना जाने कितनी बुराइयां भरी-पड़ी है। परंतु हमारे समाज में कोढ़ में खाज की तरह जो कुप्रथा सबसे घृणित, त्याज्य एवं शर्मनाक है वह है- दहेज प्रथा (Essay on Dahej Pratha in Hindi). यह कुप्रथा घुन की तरह हमारे भारतीय समाज को खोखला करती चली जा रही है।
इस कलंकित कुप्रथा ने हमारे पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में सड़ॉध की ऐसी विषैली स्थिति उत्पन्न कर दी है कि, हमारा संपूर्ण जीवन इससे विषाक्त हो गई है। इससे हमारे लोक जीवन की सारी मर्यादाऍ खंडित हो गई हैं। हमारे सामाजिक जीवन के पारंपारिक आदर्शों के सामने प्रश्न चिन्ह लग गया है।
यह प्रथा नारी-जीवन की अस्मिता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। इस प्रथा के चलते नारी जीवन त्रस्त हो चुका है। इसने नारी जीवन और सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करके रख दिया है। यही कारण है कि बहुविधि राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक और राष्ट्रीय समस्याओं की भांति यह भी एक गंभीर समस्या बन गई है। अफसोस की बात तो यह है कि, सदियों बीत जाने के बावजूद आज भी नारी शोषण से मुक्त नहीं हो पायी है।
अत: हम कह सकते हैं कि, आज के वर्तमान परिवेश में उसके लिए दहेज सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है। शाप और अभिशाप दोनों समानार्थक होते हुए भी अपने में थोड़ा अंतर छिपाए रखता है। शाप का संबंध वस्तु-विशेष, समय-विशेष और जन-विशेष से होता है। जबकि अभिशाप जीवन भर गेहूं के घुन की भांति लगा रहता है। यह एक विचित्र विडंबना है कि, एक ही कोख से पुत्र और पुत्री दोनों का जन्म होता है।
किंतु पुत्री के जन्म पर जहां परिवार के चेहरे पर उदासीनता की काली घटा मंडराने लगती है। वही पुत्र के जन्म लेने पर फूल की थालियां बजने लगती है। पुत्र को परिवार का वरदान और कुलदीपक कहा जाता है। भले ही आगे चलकर वह कुपुत्र क्यों ना बन जाए। लेकिन पुत्री को अभिशाप और चिंता का कारण माना जाता है। जन्म से ही मां अपनी लड़की को पढ़ाया धन कहना प्रारंभ कर देती है।
कन्या स्वयं को दबी और सहमी महसूस करती है जबकि पुत्र उभरा और चमकता हुआ। आपको बता दें कि इसका भी मुख्य कारण दहेज (Dowry System in Hindi) ही है। महाकवि कालिदास अभिज्ञानशाकुन्तरलम में बोल उठे हैं – कन्या का पिता होना भी कष्ट कारक है। उनकी विपत्ति को पार करना अत्यंत कठिन है। इसका कारण भी दहेज ही है।
दहेज प्रथा क्या है? What is Dowry System in Hindi
मूल रूप से शादी के दौड़ान दुल्हन के परिवार द्वारा स्वेच्छा पूर्वक दूल्हे के परिवार को सौगात के रूप में दिए जाने वाले नगदी आभूषण, फर्नीचर, संपत्ति और अन्य कीमती वस्तुएं आदि देने की इस प्रणाली को ही दहेज प्रथा (Essay on Dahej Pratha in Hindi) के नाम से जाना जाता है। दहेज एक अरबी शब्द है जो दहेज से रूपांतरित हो उर्दू और हिंदी में आया है जिसका अर्थ होता है – “सौगात”
प्राचीन काल में दहेज प्रथा का स्वरूप
महाकवि कालिदास का “भारत” नामक ग्रंथ के भगवतशरण उपाध्याय में लिखा है कि, “प्राचीन समय में दहेज प्रथा थी। परंतु आजकल के सामान विवाह के पूर्व कोई शर्त नहीं थी। विवाह संस्कार के समाप्ति होने पर वर को कन्या के अभिभावक अपनी समर्थता और क्षमता के अनुसार दहेज देते थे। कन्या को आभूषण से अलंकृत किया जाता था और यह आभूषण तथा बन्धु-बान्धवो से सौगात के रूप में मिला धन उसकी स्त्री का धन होता था।”
दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि, प्राचीन समय में विवाह के समय कन्या के माता-पिता अपने क्षमतानुसार वर पक्ष को जो वस्त्राभूषण, धन तथा सामान आदि देते थे। उसे दहेज (Essay on Dahej Pratha in Hindi) के रूप में स्वीकार कर लिया जाता था। उसमे कहीं से भी कोई दबाव नहीं था। प्राचीन काल में दहेज को ‘यौतुक’ या ‘स्त्रीधन’ कहा जाता था।
उपयुक्त बातों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि, प्राचीन काल में दहेज देने की प्रथा तो थी। परंतु उनमें किसी प्रकार की बाध्यता नहीं थी। यह पूर्णत: कन्या पक्ष की सामर्थ्य और श्रद्धा पर आधारित थी।
वर्तमान समय में दहेज प्रथा का स्वरूप
अगर हम वर्तमान समय की बात करें तो दहेज प्रथा को एक कुप्रथा बनाने का श्रेय मूल रूप से समाज के अभिजात्य वर्ग को जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इसकी उपज भी अभिजात्य वर्ग ने ही की है और आज के दौड़ में अभिजात्य वर्ग को स्वयं भी इसका परिणाम झेलना पड़ रहा है। आज दहेज प्रथा की विकृति उच्च वर्ग के साथ-साथ मध्यम तथा निम्न वर्ग के लोगों के जीवन में भी उतर आयी है।
उच्च वर्ग तथा कुछ हद तक साधारण वर्ग इस कुप्रथा के परिणाम का वैसा भोगी नहीं है। जैसा कि मध्यम वर्ग। उनके लिए तो वास्तव में यह कुप्रथा कोढ़ की खाज की तरह हो गई है। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि, आज के दौड़ मे वर पक्ष द्वारा जबरदस्ती दहेज की मांग की जाती है। इतना ही नहीं बुराई की हद तो यहां तक बढ़ गई है कि जो जितना शिक्षित है, समझदार है, उसका भाव उतना ही ज्यादा है।
एक तरह से कहे तो आज के समय में कन्याओं की शादी करने के लिए दूल्हे सामान्य रूप से चुने नहीं जाते बल्कि खरीदे जाते हैं। अगर हम दूल्हे की भाव की बात करें तो यह भी निश्चित कर दिया गया है जैसे:- डॉक्टर इंजीनियर का भाव 10-15 लाख है, IAS का 40-50 लाख, प्रोफेसर, सामान्य शिक्षक का 8-10 लाख, इतना ही नहीं ऐसे अनपढ़ व्यापारी जो खुद कौड़ी के तीन बिकते हैं। उनका भी भाव लाख से कम नहीं होता। उपयुक्त बातों पर ध्यान देने से हमें पता चलता है कि, आज के भारतीय समाज के लिए इससे और बड़ी विडंबना क्या हो सकती है।
दहेज प्रथा के कुपरिणाम
यह बात तो हमने पहले ही बता दी है कि दहेज प्रथा (Essay on Dahej Pratha in Hindi) एक कुप्रथा नहीं है। बल्कि आज के समय में हमारे समाज के लोगों ने ही इसे कुप्रथा बना दिया गया है और कुप्रथा का तो कुछ कुपरिणाम होना स्वाभाविक ही है। तो आइए जानते हैं इसके कुपरिनामरूपी चतुर्दिक तांडव के कुछ प्रभाव के बारे में :
आधुनिक युग में समाज के आर्थिक-वर्ग विभाजन ने लाखो कन्याओं को मातृत्व के सौभाग्य से वंचित कर दिया। हजारो कन्याओं की मांग में सिंदूर इसलिए न भरा जा सका। चुंकी उनके माता-पिता इतना दहेज न दे सकते थे। जितना के लड़के वालों की मांग थी।
पिता अपनी संपत्ति से अपनी पुत्री को हिस्सा देने के बजाय एक-दो लाख रूपया देकर मुक्ति पा लेना चाहते हैं। इस प्रकार सामाजिक बुराई के साथ ही नारी के कानूनी अधिकार का परोक्ष हनन भी होता है। दहेज प्रथा की वर्तमान विकृति का मूल कारण नारी के प्रति हमारा परंपरित दृष्टिकोण है।
एक समय था जब हमारी स्वस्थ्य दृष्टि पुत्र और पुत्री में कोई अंतर नहीं मानती थी। परिवार की गोद में कन्या के आगमन को लक्ष्मी का शुभ पदार्पण माना जाता था। लेकिन धीरे-धीरे समाजिक नारी के अस्तित्व के संबंध में हमारे विचार विकृत होने लगे। उस विचार की कालीमा की छाया दिन-ब-दिन भारी होकर और भी गहरी पड़ती गई और नतीजा यह हुआ कि घर की लक्ष्मी तिरस्कार की वस्तु समझी जाने लगी।
इस दहेज के कारण आज के दौड़ में लड़की के पिता को घूस, रिश्वतखोरी, कालाबाजारी आदि जैसे भ्रष्टाचारी काम का सहारा लेना पड़ता है। जिनके पास दहेज (Dowry System in Hindi) देने के लिए लाखों रुपए नहीं होते उसकी कन्याएं अयोग्य वरो के मत्थे मढ़ दी जाती है और आज के दौड़ में इसके सबसे ज्यादा शिकार गरीब तबके के लोग होते हैं।
कई बार तो ऐसा भी होता है कि वर पक्ष को उनके मांग के अनुसार दहेज मिल जाने पर भी हमारी बहनें, बेटियां को सुख-शांति का नसीब नहीं होता। उन्हें इतना ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है कि, वे ना चाहते हुए आत्महत्या करने पर विवश हो जाती हैं। वैसे तो हमें रोज समाचार पत्रों में पढ़ने को मिल ही जाता है कि, अमुक शहर में कोई युवती रेल के नीचे कट मरी, किसी बहू को ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला, तो किसी ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली, भ्रूण हत्या आदि। यह सब घिनौने परिणाम कुछ और का नहीं इसी दहेज रूपी दैत्य की देन है।
दहेज प्रथा को रोकने के प्रावधान
वास्तविकता तो यह है कि, जब इसके जन्मदाता ही मनुष्य है तो इसका समाधान भी उन्हें ही करना होगा। तो आइए जानते हैं इनके समाधान के लिए अब तक कौन-कौन सी कदम उठाए गए हैं और कौन-कौन से कदम हमें उठाना चाहिए :- हालांकि अब तक दहेज को रोकने के लिए समाज में संस्थाएं बनी है। युवकों से प्रतिज्ञा-पत्रो पर हस्ताक्षर भी लिए गए हैं। कानून भी बने हैं परंतु समस्या त्यों का त्यों है।
इसका कारण यह है कि इसके प्रति देश की जनता जागृत नहीं है। दहेज प्रथा (Dowry System in Hindi) के उन्मूलन के लिए यद्यपि 1961 में भारत सरकार द्वारा दहेज निषेध अधिनियम बनाया गया। जिसके अंतर्गत दहेज के दोषी को कड़ा दंड देने का विधान रखा गया। परंतु जनता के पूर्ण सहयोग के अभाव में यह कानून पन्नो तक ही सीमित रहा।
दहेज प्रथा को मिटाने के लिए कठोर कानून की बातें करने वाले विफल है। हिंदू कोड बिल पास हो जाने के बाद जो स्थिति बदली है। यदि उसी अनुरूप लड़की को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो जाए तो दहेज की समस्या सदा-सर्वदा के लिए समाप्त हो सकती है। दहेज पर विजय पाने के लिए स्त्री को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनना आवश्यक है। रुढ़ीग्रस्त समाज की अशिक्षित लड़की को स्वावलंबी बनाने के लिए दहेज जुटाने के बजाय उनके परिवार वालों को अपनी पुत्री को उच्च से उच्च शिक्षा दिलानी चाहिये।
उसे भी पुत्र की तरह अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए सिखाना चाहिए। इसके उन्मूलन के लिए देश के युवा वर्ग में जागृति परम आवश्यक है। यदि गहराई में जाकर देखें तो हर सामाजिक बुराई की बुनियाद आर्थिक कारण होते हैं। दहेज से प्राप्त होने वाले धन के लालच में स्त्री पर अत्याचार करने वाले तो दोषी हैं ही परंतु उसका कानूनी अधिकार ना देकर स्त्री को इस स्थिति में पहुंचा देने वाले भी कम दोषी नहीं है।
इसलिए दहेज लेने वाले को भी दंडित किया जाना चाहिए। लोगों की प्रवृत्ति में परिवर्तन होना चाहिए। इसके लिए शिक्षित युवक युवतियों को आगे आना चाहिए। इस दिशा में युद्धस्तर पर क्रांति का आवाह्न किया जाना चाहिए। जिनका नेतृत्व युवा वर्ग के हाथों में हो। जब तक युवा वर्ग दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियां दहेज लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेगी तब तक यह चलता रहेगा।
अत: हम कह सकते हैं कि यदि भारत का प्रत्येक नागरिक हृदय से दहेज ना लेने और ना देने की प्रतिज्ञा लें तभी यह समस्या समाप्त हो सकती है और भारतीय संस्कृति पर लगा हुआ यह कलंक का धब्बा सदा के लिए धूल सकता है। वर्तमान समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा इस कुप्रथा को हटाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान चलाया गया है।
उपसंहार (Conclusion)
उपर्युक्त बातो का अध्ययन करते हुए अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि, वास्तव में यह दहेज की कुप्रथा हमारी भारतीय संस्कृति के इस पवित्र भूमि पर एक कलंक है। यह मानव जाति के लिए अभिशाप ही नहीं बल्कि घोर अभिशाप है। इस कुप्रथा ने आज हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में ललनाओ की बालाओं की बहन और बेटियों की स्थिति बड़ी ही दुर्लभ और सोचनीय बना दी है।
यदि समय रहते इस प्रथा पर पूर्ण रूप से नियत साफ कर रोक नहीं लगाई गई। तो एक समय ऐसा आएगा कि, समाज पूर्णरूपेण विश्रृंखलित हो जाएगा। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि, इस प्रथा के उन्मूलन के लिए हर संभव प्रयास किया जाए। इसके साथ ही साथ पुनः हम सभी को इस धारणा के प्रति जागृत होना चाहिए कि, “दहेज प्रेम का उपहार है ना कि यह जबरदस्ती खींच ली जाने वाली संपत्ति।”