Essay on Holi in Hindi (होली पर निबंध) : दोस्तों आज मैंने कक्षा 1 से 12वीं तक के सभी विद्यार्थियों के लिए होली पर निबंध लिखी हूं। जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि दशहरा, दीपावली के तरह ही होली भी हमारे देश में मनाई जाने वाली प्रमुख पर्वों में से एक है।
तो आइए दोस्तों, आज इस Article के माध्यम से मैं आपको हमारे देश में मनाई जाने वाली इस महापर्व के बारे में विस्तार से बताऊंगी।
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Essay on Holi in Hindi। होली पर निबंध
होली भारतीय त्योहारों में मनाई जाने वाली एक खास पर्व है। यह संपूर्ण भारत के हिंदुओं का एक बहुत बड़ा त्यौहार है। हमारे ख्याल से ऋतुओ में वसंत का, फूलों में गुलाब का और रसों में श्रृंगार का जो महत्व है। वही स्थान त्योहारों में होली का है।
मात्र यही एक त्यौहार है। जिसमें वसंत की सुषमा, गुलाब की खुशबू, श्रृंगार की मादकता का अपूर्व सहयोग होता है। यह पर्व हर साल हमारे देश में फागुन (March) की पूर्णिमा को काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
वसंत के आगमन से ही शुरू होने वाली है। यह त्यौहार अपने झोली में रंग और गुलाल लेकर आती है और सारे भारतवासी को उल्लास आनंद और मस्ती से भर देती है।
इस दिन पूरे भारतवर्ष मस्ती के भांग में मस्त रहता हैं। उत्साह और मस्ती से भरा यह त्योहार पूरे भारतवर्ष को एक-दूसरे के प्रति स्नेह और निकटता बनाए रखने का संदेश देती है।
इस दिन हम पाप पुण्य की भावों से मुक्ति पाकर विशुद्ध आनंद की प्राप्ति करते हैं। इस प्रकार अगर मैं अपने सोच से कहूं तो मेरे अनुसार राग- रंग, रवानी-जवानी, मौज-मस्ती, हंसी-खुशी और उमंग-तरंग का ही दूसरा नाम होली है।
होली से जुड़ी पौराणिक कथा । Holi Mythology
होली (Essay on Holi in Hindi) नामक इस महापर्व को मनाए जाने के पीछे हमारे समाज में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार कहा जाता है कि, काफी समय पहले भारत वर्ष के हिरण्यकरण वन नामक स्थान का एक राजा थे। जिनका नाम हिरण्यकश्यप था।
वैसे कहा जाए तो हिरनाकश्यप पहले से ही एक नास्तिक और राक्षस प्रवृत्ति का राजा था। परंतु ऐसा भी कहा जाता है, कि एक बार उन्होंने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान मांग लिया कि वह न किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा, न पशुओं द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा, न रात में, न घर के अंदर कोई उसे मार सकता है, न घर के बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से, न किसी शस्त्र के प्रहार से, कोई उसे मार सकेगा।
ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए। इसी वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने आप को अमर समझने लगा। तत्पश्चात उसने तीनों लोग को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
जिससे तीनों लोक की शांति भंग हो गई। इस वरदान ने तो उसे इतना अहंकारी बना दिया कि वे स्वयं को ही भगवान मानने लगे। उनका कहना था, कि सब उनकी पूजा करें।
इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने तो अपने राज्य के सभी मंदिरों में अपनी प्रतिमा भी लगवा दिए और सभी लोगों को अपनी पूजा करवाने के लिए प्रताड़ित करने लगे। लेकिन सबसे खास बात तो यह है, कि हिरना-कश्यप के पुत्र प्रह्लाद स्वयं ही विष्णु के महाउपासक थे।
तो स्वाभाविक सी बात है, कि हिरनाकश्यप अपने स्वयं के पुत्र प्रह्लाद को भी प्रताड़ित करते होंगे। परंतु काफी यातना और प्रताड़ना के बावजूद भी प्रह्लाद विष्णु के ही उपासक बने रहे।
इतना कुछ करने के बाद भी जब प्रह्लाद अपने निश्चय से डिगा नहीं। तो बाद में काफी तंग आकर हिरना- कश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मार डालने की सोची और इस काम के लिए उसने अपनी बहन होलिका को सहायक बनाया।
क्योंकि होलिका के पास एक ऐसा चादर था। जिसे ओढ़ लेने मात्र से उस पर अग्नि का प्रभाव नहीं होता था और यह चादर भी काफी तपस्या करने के बाद उसे भगवान विष्णु द्वारा वरदान स्वरूप मिला था।
और अपने भाई के आदेश अनुसार अंततः होलीका अपने भांजा प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश की। परंतु संयोगवश ऐसा हुआ कि, आग में प्रवेश करते ही हवा की एक ऐसी झोका आई।
जिससे चादर होलिका के शरीर से अलग होकर प्रह्लाद के शरीर से लिपट गई। परिणाम यह हुआ कि होलिका आग में जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
इस प्रकार बुराई पर अच्छाई की जीत के इसी खुशी में तब से लेकर आज तक सभी लोग परंपरा अनुसार लकड़ियों के पूंज में आग लगाकर होलिका दहन करते हैं और दूसरे दिन रंग भरी होली खेली जाती है। दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है कि, भगवान श्री कृष्ण जिन्होंने मथुरा में जन्म लिया और वृंदावन नामक स्थान पर अपना बचपन बिताए।
इसी दिन उन्होंने गोपियों के साथ रासलीला की थी। इसी दिन नंदगांव में सभी लोगों ने रंग और गुलाल के साथ खुशियां मनाई थी। जिसे होली के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन और वर्तमान भारत में होली का त्यौहार
अगर मैं प्राचीन समय की बात करूं तो शायद यह कहना सही होगा कि, हमारे देश के इस पवित्र भूमि पर मनाई जाने वाली होली (Essay on Holi in Hindi) नामक इस महापर्व का स्वरूप आज के वर्तमान भारतीय समाज से कहीं ज्यादा अच्छा था।
जैसा कि मै पहले ही बता चुकी हूं। कि होली नामक यह त्यौहार प्रतिवर्ष हमारे भारतीय समाज के सभी हिंदुओं द्वारा फागुन माह की प्रथम पूर्णिमा को काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है। आज से कुछ समय पहले खुशियों की माहौल में सभी लोग एक साथ मिलकर रात्रि के समय में होलिका दहन करते थे।
बीते वर्षों की कमियों पर विचार होता था। उसके बाद दूसरे दिन होली खेली जाती थी। सभी लोग सुबह- सुबह एक दूसरे पर रंग डालते थे। दोपहर के बाद स्नान के पश्चात अबीर-गुलाल का कार्यक्रम प्रारंभ होता था।
उस दिन हर चेहरा एक ही रंग में रंगा लगता था। उस समय न कोई बड़ा होता था, न छोटा, न कोई ऊंचा होता, न नीचे, न कोई धनी होता, न निर्धन बच्चे, बड़े, बूढ़े सभी स्त्री-पुरुष एक ही रंग में रंगे हुए, एक ही मस्ती में मस्त होते थे।
तन-मन में नव स्फूर्ति लाने वाली फागुन की बयार किसानों के मन में नवांकुर उपजाति। फसल से हरा- भरा खेत और नव परिधान धारण किए प्रकृति की छटा देखने लायक होती थी। इस दिन हर गांव के गली मोहल्लों में तरह-तरह की होली (Essay on Holi in Hindi) गीतो की आवाज गूंजती थी। प्रीतिभोज का आयोजन होता था। मिठाइयां बांटी जाती थी।
ढोल और मंजीरे की ध्वनी से आकाश गूंजने लगता था। सारा वैर-वैभव भूलकर सभी एक दूसरे के गले मिलते थे। इस प्रकार कहे तो प्राचीन समय की होली (Essay on Holi in Hindi) मे यह कहावत- होली आयी और खुशियों की झोली लायी पूर्णतया सत्य साबित होती है।
आइए अब बात करते हैं, वर्तमान समय में मनाई जाने वाली होली की-
अगर मैं अपने ख्याल से कहूं तो वर्तमान समय में होली नामक इस पर्व को इस तरह से मनाया जाता है कि, इसका कोई महत्व ही नहीं रह जाता। आज की होली कुछ इस तरह से मनायी जाता है कि लोगों में भाईचारा बढ़ने के बजाय दुश्मनी ही पैदा हो जाती है और हमारे ख्याल से इसका सबसे बड़ा कारण है।
आज के आधुनिक भारत में होली नामक इस महापर्व के अवसर पर शराब जैसी और कई अन्य नशीले पदार्थों का भरपूर सेवन करना। आज के समय में ऐसी होली मनाई जाती है, कि होलिका दहन के बदले घरों के चौकी, छप्पर जलाकर रख दिए जाते हैं। खेत खलिहानओ के अनाज मवेशियों का चारा तक स्वहा हो जाता है। न जाने और कितनी सारी खराब कामे की जाती है।
यही कारण है कि, आज समाज में आपसी प्रेम के बदले दुश्मनी पनप रही है। जोड़ने वाला त्यौहार मनो को तोड़ने लगे हैं। होली के इन बुराइयों के कारण सभ्य और समझदार लोग ने इससे किनारा कर लिया है। रंग और गुलाल से लोग भागने लगे हैं। इस प्रकार हम कहे तो आज यह पर्व बहुत ही खराब रूप धारण कर चुका है।
उपसंहार (Conclusion)
सभी त्योहारों में होली के त्यौहार उत्तम मानी जाती है। परंतु आज की भौतिकवादी दुनिया में होली (Essay on Holi in Hindi) की खुशियों की झोली से बहुत कुछ खाली हो गई है। फिर भी इसमें अन्य त्योहारों से अधिक खुशियां है।
अतः इन दिनों कुछ हानि पर तथ्यों को छोड़ दे तो ऐसा लगता है कि, सच में होली बुराइयों पर अच्छाई की जीत है। जीवन में रस का संचार करने वाली इस पर्व होली (Essay on Holi in Hindi) का अभिनंदन तभी सार्थक होगा। जब हम संप्रदाय, जाति, धर्म तथा ऊंच-नीच की भावना और द्वेष से ऊपर उठकर सब को गले लगाने के लिए तैयार होंगे।
होली संपूर्ण भारतवर्ष में मनाए जाने वाली एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन सभी लोग अपने मन से सभी प्रकार के ईष्या-द्वेष निकाल कर एक-दूसरे के गले मिलते और रंगों से भरी होली खेलते हैं।
यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह पर्व हमें इस बात की याद दिलाती है कि, बुरी शक्ति कितनी भी बड़ी क्यों ना हो पर वह क्षणिक होती है। इसलिए हमें हर हमेशा सच्चाई पर अडिग रहना चाहिए। वास्तव में यह होली का रंग भरी त्यौहार अपने आप में काफी महत्व रखती है।
होली से सम्बंधित कुछ प्रश्न और उत्तर
Q – होली कब मनाया जाता है?
A – होली प्रतिवर्ष “फागुन की पूर्णिमा” को मनाया जाता है।
Q – वृंदावन में कौन-सा मंदिर होली के लिए प्रसिद्ध है?
A – “बांके बिहारी मंदिर” वृंदावन में होली के लिए प्रसिद्ध है।
Q – ओडिशा में होली को क्या कहा जाता है?
A – ओडिशा में होली को “डोला पुर्णिमा” कहा जाता है।
Q – हिरण्यकश्यप कौन था?
A- हिरण्यकश्यप एक राजा था।
Q – होलिका कौन थी?
A – होलीका हिरण्यकश्यप की बहन थी।
Q – प्रह्लाद किसका भक्त था?
A – प्रह्लाद “भगवान विष्णु” का भक्त था।
Q – होली क्या है?
A – होली एक रंगों का त्योहार है।